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सुधा मूर्ति की जीवनी: एक साधारण महिला की असाधारण कहानी

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जब भारत की प्रेरणादायक महिलाओं की बात होती है, तो सुधा मूर्ति का नाम सबसे ऊपर आता है। एक इंजीनियर, लेखिका, समाजसेवी और हाल ही में राज्यसभा सांसद बनीं सुधा मूर्ति की कहानी हमें सिखाती है कि कैसे साधारण जीवन जीते हुए भी असाधारण कार्य किए जा सकते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: मजबूत नींव की शुरुआत

सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 को शिगांव, कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता एक सर्जन थे और परिवार में शिक्षा और नैतिक मूल्यों को बहुत महत्व दिया जाता था। बचपन से ही उन्हें कहानियों और किताबों में रुचि थी, खासकर अपने दादा के माध्यम से उन्हें साहित्य की दुनिया से परिचय मिला।

उन्होंने इंजीनियरिंग में शिक्षा प्राप्त की और उस समय के पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपनी जगह बनाई। वे TELCO (अब टाटा मोटर्स) में नौकरी पाने वाली पहली महिला इंजीनियर बनीं — यह 1970 का दशक था, जब यह असंभव माना जाता था।

इन्फोसिस की कहानी और पारिवारिक जीवन

इंजीनियरिंग के दौरान ही IISc, बैंगलोर में पढ़ते समय उनकी मुलाकात नारायण मूर्ति से हुई, जो आगे चलकर Infosys कंपनी के संस्थापक बने। सुधा मूर्ति ने उनकी यात्रा में एक मजबूत साथी की भूमिका निभाई।

कहते हैं कि सिर्फ ₹10,000 की मदद से सुधा मूर्ति ने नारायण मूर्ति को कंपनी शुरू करने में सहयोग दिया। इसके बाद उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभाईं और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में कदम रखा।

लेखिका और कहानीकार: दिल से निकली कहानियाँ

सुधा मूर्ति ने अनेक प्रसिद्ध कहानियों और पुस्तकों की रचना की है। उनकी लेखनी सरल, भावनात्मक और जीवन के गहरे संदेशों से भरपूर होती है। उनकी लोकप्रिय किताबें जैसे Wise and Otherwise, The Day I Stopped Drinking Milk, Grandma’s Bag of Stories, और Three Thousand Stitches ने लाखों पाठकों को प्रभावित किया है।

उनकी कहानियाँ भारतीय संस्कृति, नैतिकता, और समाज की सच्चाइयों को बड़े सहज तरीके से दर्शाती हैं।

इन्फोसिस फाउंडेशन और समाजसेवा

1996 में सुधा मूर्ति Infosys Foundation की चेयरपर्सन बनीं। उन्होंने हजारों लाइब्रेरी, स्कूल, शौचालय और अस्पताल बनवाए। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और आपदा राहत के क्षेत्रों में अद्भुत कार्य किया है।

उनका मानना है कि “धन का असली मूल्य तभी है जब वह किसी जरूरतमंद के काम आए।”

हाल की उपलब्धियाँ: पद्म भूषण से संसद तक

2023 में भारत सरकार ने सुधा मूर्ति को पद्म भूषण से सम्मानित किया — यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।

2024 में, उन्होंने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की — उन्हें राज्यसभा सांसद के रूप में नामित किया गया। यह भारत की महिलाओं और युवाओं के लिए एक बड़ा प्रेरणास्रोत बना।

मूल्य, विचारधारा और विरासत

सुधा मूर्ति एक सच्ची भारतीय महिला की मिसाल हैं — सादगी से जीवन जीने वाली, पर उच्च विचारों वाली। वे आज भी सादी सूट या सूती साड़ी पहनती हैं, और हमेशा दूसरों की मदद करने को तैयार रहती हैं।

उनका एक प्रसिद्ध कथन है:

“पैसा सब कुछ नहीं होता, लेकिन अच्छे मूल्य और आदर्श कभी नहीं मरते।”

क्यों हैं सुधा मूर्ति आज के दौर में ज़रूरी?

आज की तेज़-तर्रार दुनिया में सुधा मूर्ति जैसी हस्तियाँ हमें मूल्य आधारित जीवन जीने, दूसरों की सेवा करने, और सरलता में सौंदर्य देखने की प्रेरणा देती हैं।

उनकी जिंदगी हमें यह सिखाती है कि सफलता केवल ऊँचे पदों और धन से नहीं मापी जाती — बल्कि उससे मापी जाती है कि आपने कितने जीवन को छुआ।


निष्कर्ष

सुधा मूर्ति की जीवनी केवल एक महिला की उपलब्धियों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन मूल्यों और सिद्धांतों की कहानी है जो एक इंसान को “महान” बनाते हैं। चाहे वे एक लेखिका हों, समाजसेवी हों, या सांसद — उन्होंने हर भूमिका में अपनी छाप छोड़ी है।

वे आज भी हमें सिखाती हैं कि बड़ा बनना है तो पहले अच्छा इंसान बनो।


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